Jyotish Gyan (Part 1) ज्योतिष ज्ञान (Hindi) by Anil Vats (2024 With Enhanced Chapter 7 on Varga)

वेद का नेत्रा है ‘ज्योतिष ज्ञान’

ज्योतिष के प्रारंभिक ज्ञान के लिये यह पुस्तक ‘गागर में सागर’ के समान है। इस पुस्तक में ज्योतिष के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में, वैज्ञानिक व आध्यात्मिक आधार पर बताया है।
स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि आज के वैज्ञानिक और कृत्रिम बौद्धिकता की ओर बढ़ते युग में ज्योतिष का क्या योगदान है? क्या ज्योतिष हमें भाग्यवादी बनाता है या कर्मयोगी?
वस्तुतः जीव के पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर ही यह अमूल्य मनुष्य योनि प्राप्त होती है। कैसे पता चले कि हमने पूर्व जन्मों में कैसे-कैसे कर्म किये थे? किन-किन समस्याओं के दौर का अनुभव किया?
ज्योतिष इन्हीं समस्याओं का समाधान करता है। कुन्डली का दसवां भाव आपके कर्मों का शुभाशुभ वर्णन करता है। 11वां भाव आपके कर्मों का पफल आय रुप में तथा द्वितीय भाव आपका बैंक बैलेस कितना होगा, बतलाता है।
पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान व राजयोग यदि 10वें भाव से पता चलते हैं, तो शत्रा, कर्जे, बीमारी आदि का ज्ञान 6ठा भाव बताता है।
नौकरी में लाभ है या अपना व्यापार में लाभ! डॉक्टर बनुं या इंजीनियर, या पिफर वकालत से लाभ होगा, यह 10वां भाव मार्ग दर्शन करता है। धर्म त्रिकोण से स्वास्थ, मान सम्मान, संतान सुख, विद्या प्राप्ति, पिता, गुरुदीक्षा व धार्मिक जीवन शैली का पता चलता है। अर्थ त्रिकोण आपके परिवार की समृद्ध, शत्राओं से प्रतिस्पर्धा, रोग प्रतिरोधक क्षमता, ऋण अनुबन्धन का बोध कराता है, तो काम त्रिकोण संसारिक सुख, वैभव, वैवाहिक कर्त्तव्यों का अनुभव कराता है।
संसार को तो जाना, परन्तु स्वयं को कब पहचाना, पंतजलि के अष्टांग योग की शिक्षा देता है, मोक्ष त्रिकोण। प्रश्न कुंडली के माध्यम से वर्तमान, में घटने वाली घटनाओं को देखने की क्षमता कठोर परिश्रम व स्वाध्याय से जानी जा सकती है। वर्ष कुंडली से वर्षपफल में घटने वाली घटनाओं का ज्ञान होता है। मुहूर्त्त काल अवधि के शुभाशुभ समय का बोध कराते हैं। वही विवाह प्रकरण में अष्टकूट का वैज्ञानिक विवेचन हमारे ऋषि मुनियों की गहन खोज की जानकारी देती है। वास्तु अर्थात पंचतत्वों का आशीर्वाद आवास से कैसे हमें मिले, विश्वकर्मा व वास्तु पुरुष के वरद हस्त द्वारा ही प्राप्त होता है।
-आचार्य अनिल वत्स
अनक्रमणिका
1. आकाश परिचयः काल परिचय, भारतीय पद्धति, भचक्र, नक्षत्रा, राशियां, नवग्रह।
2. पंचांग परिचयः तिथि, वार, नक्षत्रा, योग, करण।
3. नवग्रह व राशि परिचयः उच्च और नीच राशि, शुभ-अशुभ ग्रह, नैसर्गिक मैत्रा, तात्कालिक मैत्रा, पंचध मैत्रा।
4. त्रिकोण, पणपफर, आपोक्लिम, त्रिक, उपचय भाव परिचयः चर, स्थिर, द्विस्वभाव पृष्ठोदय, शीर्षोदय, उभयोदय राशियाँ।
5. जन्म कुण्डली बनानाः ईष्ट काल, भ्यात, भभोग, इष्ट लग्न निकालना
6. सप्त वर्ग कुण्डली ज्ञानः होरा, द्रेष्काण, सप्त मांश, नवांश, दशमांश, द्वादशांश और त्रिशांश कुंण्डलियाँ।
7. 12 भावों से किए जाने वाले विचारः भावकारक, वस्तुओं के स्थिर कारक।
8. विंशोत्तरी महादशा ज्ञानः अन्तर्दशा पफल, प्रत्यन्तर दशापफल।
9. 12 लग्नों में राशियों के पफलः नवग्रहों का 12 राशियों में पफल।
10. नवग्रहों के 12 भावों में विशेष पफल।
11. भावपति विचारः त्रिकोण, केंद्र के शुभाशुभ पफल विचार।
12. नवग्रहों की दृष्टियाँः 3-6-11 भावों के स्वामी केन्द्र के स्वामी, त्रिकोण के स्वामी, 6-8-12 वें भावों के स्वामी का शुभशुभ विचार
13. राहु व केतु विचार
14. राजयोग विचारः केन्द्र व त्रिकोण के स्वामियों का परस्पर संबंध्।
15. विशिष्ट राजयोगः पंच महापुरुष योग।
16. मारक विचारः, मध्यायु व दीर्घायु, शनि की विशेष मारक क्षमता
17 वर्ष पफल विचारः वर्ष कुण्डली का सिद्धांत वर्ष कुण्डली बनाना, वर्ष कुण्डली विचार।
18. वर्ष कुण्डली के 16 योगः इक्बाल, इन्दुवार, इत्थशाल, इसरापफ, नक्त, यमया, मणऊ, कम्बूल, गैरि कम्बूल, खल्लासर, रद्द, दुपफापिफल कुत्थ, दुत्थ, कुत्थीर, शुभतम्बीर कुत्थ, दुरपफ।
19. मुंथा विचारः
20. गोचर विचारः नवग्रहों (सूर्य, चन्द्रादि) का जन्म राशि से गोचर के समय शुभाशुभ पफल प्राप्ति।
21. अरिष्ट शान्ति विचारः नवग्रहों का दान, स्नान, जाप, हवन आदि द्वारा शान्ति कर्म, ज्योतिषीय उपचार के मूलभूत नियम।
22. प्रश्न कुण्डली विचारः ग्रहों के दीप्ति आदि 10 भेद, ग्रहों के स्वरूप और लक्षण।
किस भाव से क्या विचारें।
भावों से कार्य सिद्ध का ज्ञान।

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