Brihat Indra Jal Arthat Kautuk Ratna Bhandagar वृहद इन्द्रजाल अर्थात कौतुकरत्न भाण्डागार (Hindi) by Dev Charan Awasthi
इन्द्रजाल का नाम सुनते ही सभी को लगता है कि यह कोई मायावी विद्या है। बहुत से लोग इसे तंत्र, मंत्र और यंत्र से जोड़कर देखते हैं। कई लोग तो इसे काला जादू, वशीकरण, सम्मोहन, मारण और मोहन से भी जोड़कर देखते हैं। हालांकि फारसी में इसे तिलिस्म कहा जाता है। यह शब्द भी भारत में बहुत प्रचलित है जो जादू के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता
प्राचीनकाल में इस विद्या के कारण भी भारत को विश्व में पहचाना जाता था। देश-विदेश से लोग यह विद्या सिखने आते थे। आज पश्चिम देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है तो इसका कारण है भारत का ज्ञान।
माना जाता है कि गुरु दत्तात्रे भी इन्द्रजाल के जनक थे। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में एक बड़ा भाग विद्या पर लिखा है। सोमेश्वर के मानसोल्लास में भी इन्द्रजाल का उल्लेख मिलता है। उड़ीसा के राजा प्रताप रुद्रदेव ने ‘कौतुक चिंतामणि’ नाम से एक ग्रंथ लिखा है जिसमें इसी तरह की विद्याओं के बारे में उल्लेख मिलता है। बाजार में कौतुक रत्नभांडागार, आसाम और बंगाल का जादू, मिस्र का जादू, यूनान का जादू नाम से कई किताबें मिल जाएगी, लेकिन सभी किताबें इन्द्रजाल से ही प्रेरित हैं।
इन्द्रजाल के अंतर्गत मंत्र, तंत्र, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, नाना प्रकार के कौतुक, प्रकाश एवं रंगादि के प्रयोजनीय वस्तुओं के आश्चर्यजनक खेल, तामाशे आदि सभी का प्रयोग किया जाता है। इन्द्रजाल से संबंधित कई किताबें बाजार में प्रचलित है। उन्हीं में से एक बृहत् इन्द्रजाल अर्थात कौतुकरत्न भाण्डागार किताब बहुत ही प्रचलित है। खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन बंबई से प्रकाशित इस किताब में पंडित देवचरणजी अवस्थी द्वारा इन्द्रजाल से संबंधित सभी विषयों को संग्रहित किया गया है।
आखिर यह इन्द्रजाल विद्या है क्या? जैसे कि इसके नाम में ही इसका रहस्य छुपा हुआ है। देवताओं के राजा इंद्र को छली या चकमा देने वाला माना गया है बस इन्द्रजाल का मतलब भी यही होता है। रावण इस विद्या को जानता था। रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह अपने दुश्मनों के लिए इन्द्रजाल बिछा देता था जिससे कि दुश्मन भ्रमित होकर उसके जाल में फंस जाता था। राक्षस मायावी थे और वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। दरअसल आजकल इसे जादूगरों की विद्या माना जाता है।
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